प्रसंगवंश
अप्रैल, 2024
स्वच्छता को राष्ट्र और समाज के विकास के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण मानने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के विचार में स्वच्छता केवल शारीरिक और आस-पास की सफ़ाई तक सीमित नहीं होकर मानसिक और सामाजिक स्वच्छता का भी प्रतीक थी। उनका स्पष्ट मानना था कि स्वच्छता समाज की बुनियादी आवश्यकताओं में से एक है, और एक स्वच्छ और स्वस्थ समाज ही सही मायनों में विकास कर सकता है। महात्मा गाँधी का कहना था, ‘स्वराज्य सफ़ाई और स्वच्छता के बिना अधूरा है।’ स्वच्छता को एक स्वस्थ समाज की नींव बताते हुए गाँधीजी सभी नागरिकों से अपील करते थे कि वे अपनी ज़िम्मेदारी समझें और अपने आस-पास के वातावरण को स्वच्छ रखें। गाँधीजी के विचार में स्वच्छता आत्मनिर्भरता का प्रतीक थी। उनके इसी सामाजिक समानता, आत्मनिर्भरता और स्वास्थ्य के प्रति व्यापक दृष्टिकोण और विचारों से प्रेरित होकर प्रधानमन्त्री के नेतृत्व में दस वर्ष पूर्व ‘स्वच्छ भारत मिशन’ की शुरुआत की गई, जो महात्मा गाँधी के आदर्शों पर आगे बढ़ने एवं जन जागरूकता उत्पन्न करने का जीवंत एवं सफल उदाहरण है। इस माह मिशन के दस साल पूरे होने के पड़ाव पर हम पीछे मुड़कर देखें तो इस मिशन के अंतर्गत कचरा प्रबन्धन और ठोस अपशिष्ट प्रबन्धन, स्वच्छता सर्वेक्षण, प्लास्टिक कचरा प्रबन्धन सहित कई उल्लेखनीय सफलताएँ हासिल की गई हैं। सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक यह है कि 2019 तक सरकार ने ग्रामीण भारत को खुले में शौच से मुक्त घोषित कर दिया। 110 मिलियन यानी 11 करोड़ से अधिक शौचालय बनाए गए, जिससे ख़ासकर ग्रामीण क्षेत्रों में लाखों परिवारों को लाभ हुआ। स्वच्छ भारत मिशन ने स्वच्छता और सफ़ाई के बारे में लोगों की मानसिकता बदलने में सफलता अर्जित की है। यह हमारी सामूहिक ज़िम्मेदारी है कि हम अब तक इस मोर्चे पर की गई प्रगति को बनाए रखें और आने वाली पीढ़ियों के लिए स्वच्छ और स्वस्थ वातावरण सुनिश्चित करें और इस वर्ष के आदर्श वाक्य– ‘स्वभाव स्वच्छता, संस्कार स्वच्छता’ को आत्मसात करें।
अपनी रचनाओं में सामाजिक असमानता, शोषण और अन्याय के ख़िलाफ़ स्वर मुखर करने वाले साहित्यकार और विचारक विजयदेव नारायण साही की इसी माह हम जन्मशताब्दी मना रहे हैं। 7 अक्तूबर, 1924 को उत्तर प्रदेश के बनारस (अब वाराणसी) के कबीर चौरा मोहल्ले में जन्मे साही की हाई स्कूल तक की शिक्षा बनारस में हुई, उसके बाद वे बड़े भाई के पास इलाहाबाद (प्रयागराज) चले गए। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी और फ़ारसी विषय में स्नातक करने के बाद उन्होंने वहीं से अंग्रेज़ी साहित्य में प्रथम श्रेणी में प्रथम स्थान के साथ एम.ए. की परीक्षा पास की। उनके अध्यापन-कर्म का आरंभ काशी विद्यापीठ से हुआ, फिर इलाहाबाद विश्वविद्यालय के अंग्रेज़ी विभाग से सम्बद्ध हो गए। निबन्ध और गद्य लेखन में भी अपनी विशिष्ट पहचान बनाने वाले मूल रूप से एक कवि एवं आलोचक साहीजी की कविताएँ ‘तीसरा सप्तक’ में छपने के बाद काफ़ी चर्चा में आईं। उनकी कविताएँ किसी एक शैली या विधा में बँधी नहीं थीं और उनमें विविधता, नवीनता और एक ताज़गी बनी रहती थी। हिन्दी साहित्य के विकास में महत्वपूर्ण योगदान करने वाले साहीजी की लेखनी में गहन चिन्तन, सामाजिक सरोकार और मानवतावादी दृष्टिकोण की गूँज सुनाई देती है। उनको स्मरण करते उनकी पुत्री के संस्मरण और उनके कृतित्व पर समर्पित आलेखों से परिपूर्ण ‘आजकल’ का यह अंक अन्य विविधतापूर्ण सामग्री के साथ आपके पढ़ने के लिए प्रस्तुत है।