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अक्टूबर 2024

अक्टूबर 2024 (1945 से लगातार प्रकाशित साहित्य और संस्कृति का मासिक)




आगामी अंक




इस अंक में

प्रसंगवंश

स्वच्छता को राष्ट्र और समाज के विकास के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण मानने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के विचार में स्वच्छता केवल शारीरिक और आस-पास की सफ़ाई तक सीमित नहीं होकर मानसिक और सामाजिक स्वच्छता का भी प्रतीक थी। उनका स्पष्ट मानना था कि स्वच्छता समाज की बुनियादी आवश्यकताओं में से एक है, और एक स्वच्छ और स्वस्थ समाज ही सही मायनों में विकास कर सकता है। महात्मा गाँधी का कहना था, ‘स्वराज्य सफ़ाई और स्वच्छता के बिना अधूरा है।’ स्वच्छता को एक स्वस्थ समाज की नींव बताते हुए गाँधीजी सभी नागरिकों से अपील करते थे कि वे अपनी ज़िम्मेदारी समझें और अपने आस-पास के वातावरण को स्वच्छ रखें। गाँधीजी के विचार में स्वच्छता आत्मनिर्भरता का प्रतीक थी।

प्रमुख आलेख

साहस और विवेक की कविता ई-मेल : arvindkumartripathi1234@gmail.com

लेखक: अरविन्द त्रिपाठी

साही की समग्र कविता यात्रा एक बहस करते आदमी के सत की परीक्षा और साखी दोनों है। जो अपनी कविता को राजनैतिक विकल्प न मानने के बावजूद सतत संवाद की कविता लिखता रहा। जिसने ख़ुद के ज़रिए एकालाप की शैली में ख़ुद से संवाद, ख़ुद से जिरह और जन संवाद के ज़रिए ज़माने से लगातार बातचीत करने की कोशिश की है। ज़ाहिर है साही की यह कोशिश आने वाली पीढ़ियों के लिए सामाजिक कर्म की तरह जागरण और विद्रोह के लिए प्रेरित करेगी। साही ख़ुद कहते हैं, ‘सुनो भाई साधो असली सवाल है/ कि असली सवाल क्या हैं? वे फिर कहते हैं, ‘सब सो रहे हैं /पर एक मेरी आँखों में नींद नहीं’। शायद इसलिए कि उनके भीतर असंतोष की लहरें दिन-रात उठती-गिरती रहती हैं। यह आंतरिक बेचैनी दरअसल बदलाव की आहट है।

विशिष्ट/फोकस/विशेष आलेख

बेजोड़ स्थापत्य कला का नमूना

लेखक: - सुमन बाजपेयी

‘रानी की वाव’ को रानी उदयमती के उनके पति के प्रति प्रेम और समर्पण का प्रतीक माना जाता है। इसके अलावा यह प्राचीन भारत में जल प्रबंधन की बेहतरीन व्यवस्था का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, क्योंकि यहाँ जल संरक्षण के लिए कई तकनीकों का उपयोग किया जाता था। यह वाव 11वीं शताब्दी की भारतीय भूमिगत वास्तु संरचना और जल प्रबंधन में भूजल संसाधनों के उपयोग की तकनीक का सबसे विकसित और बृहत उदाहरण है। ‘रानी की वाव’ का इतिहास 900 साल से भी ज्यादा पुराना है। ग्यारहवीं शताब्दी में इस वाव का निर्माण तब हुआ जब चालुक्य राजवंश सत्ता में था। 1063 में सोलंकी शासन के राजा भीमदेव प्रथम की याद में उनकी पत्नी रानी उदयमति ने इसका निर्माण करवाया था। राजा भीम देव का मात्र 42 वर्ष की आयु में ही निधन हो गया था। इसे बनने में 20 वर्षों का समय लगा। रानी उदयमती ने गुजरात के पाटन ज़िले में सरस्वती नदी के तट पर यह बावड़ी बनवाई थी।

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April 2023

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प्रेमचन्द और फ़िल्मी अनुभव

प्रेमचन्द के फ़िल्मी अनुभवों का संसार मुश्किल से एक वर्ष का है। फ़िल्म में जाने का उनका कोई इरादा नहीं था, लेकिन ‘हंस’ और ‘जागरण’ की आर्थिक हानि ने उन पर बम्बई (अब मुम्बई) जाने का दबाव डाला और उन्होंने अपने पत्रों में भी इसे स्वीकार किया कि यह उनके जीवन की सबसे बड़ी ग़लती थी। प्रेमचन्द मुम्बई पहुँचकर अजन्ता सिनेटोन कम्पनी में कहानी-संवाद लेखक का कार्यभार सम्भालते हैं और अपनी पत्नी शिवरानी देवी को पत्र में लिखते हैं, “अभी मैं नहीं कह सकता कि मैं यहाँ रह भी सकूँगा या नहीं। जगह बहुत अच्छी है, साफ़-सुथरी सड़कें, हवादार मकान लेकिन जी नहीं लगता। जैसी कहानियाँ मैं लिखता हूँ उन्हें निभाने के लिए यहाँ कोई ऐक्ट्रेस ही नहीं है। मेरी एक कहानी यहाँ सबको अच्छी लगी लेकिन यहाँ की ऐक्ट्रेसें उसे निभा नहीं सकतीं। उसे निभाने के लिए कोई पढ़ी-लिखी ऐक्ट्रेस...

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