प्रसंगवंश
अप्रैल, 2024
साहित्य ने सदैव समाज के बदलावों और संवेदनाओं को प्रतिबिम्बित करने के लिए दर्पण की भूमिका निभाई है। इसमें महिलाओं का योगदान अविस्मरणीय है। वे केवल प्रेरणा का स्रोत नहीं रहीं, बल्कि स्वयं रचनाकार भी रही हैं। स्त्री सृजन की शक्ति है। उनकी लेखनी में न केवल व्यक्तिगत अनुभव बल्कि समाज की गहरी समझ झलकती है।
साहित्य का इतिहास जितना पुराना है, उतनी ही पुरानी स्त्रियों की उस यात्रा की कथा है, जिसमें उन्होंने अपने विचारों और भावनाओं को शब्दों का रूप दिया। परम्परागत सामाजिक बंधनों के बीच भी, स्त्रियों ने अपनी लेखनी को सशक्त माध्यम बनाया और साहित्य को नई ऊँचाइयाँ प्रदान कीं।
इस अंक में इसी ‘स्त्री स्वर’ को विभिन्न रचनाओं के माध्यम से माइक्रोफ़ोन यानी एक समन्वित मंच देने का प्रयास किया गया है।
प्राचीन भारत में नारी को केवल जीवनदायिनी के रूप में ही नहीं, बल्कि शक्ति, ज्ञान और समृद्धि की अधिष्ठात्री देवी के रूप में पूजा जाता था। वैदिक युग से लेकर प्राचीन ग्रंथों तक, नारी के रूप में शक्ति, सौन्दर्य, और मातृत्व के प्रतीकों को प्रतिष्ठित किया गया। वैदिक युग में नारी को विद्या, धर्म और समाज का स्तम्भ माना जाता था। ‘ऋग्वेद’ की ऋषिकाएँ गार्गी और मैत्रेयी जैसी विदुषियों ने अपनी विद्वत्ता से समाज को दिशा दी।
समय के साथ, सामाजिक और सांस्कृतिक बदलावों ने नारी की स्थिति को प्रभावित किया। मध्यकालीन भारत में, नारी को अनेक सामाजिक बंधनों का सामना करना पड़ा। शिक्षा और स्वतन्त्रता के अधिकारों से वंचित होना, बाल विवाह, सती प्रथा और पर्दा प्रथा जैसी परम्पराएँ नारी की स्वतन्त्रता को सीमित करने लगीं। हालाँकि, आधुनिक युग में स्त्री-शक्ति को नए सिरे से पहचाना जा रहा है। अब वह केवल परिवार तक सीमित नहीं, बल्कि उसने पुरुषों के वर्चस्व वाले जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अपनी उपस्थिति और पैंठ बनाई है। वह प्रशासक, वैज्ञानिक, लेखक, राजनेता, सैनिक, अभिनेत्री, कलाकार और उद्यमी सहित विभिन्न अन्य सभी रूपों में समान रूप से अपनी भूमिका निभा रही है।
एक बार फिर लेखन और साहित्य की बात पर लौटें तो प्राचीन भारतीय साहित्य में स्त्रियों का योगदान भले ही सीमित रहा हो परन्तु स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण रहा। मीराबाई की भक्ति कविताएँ आत्मा और परमात्मा के संवाद का अद्वितीय उदाहरण हैं।
आधुनिक साहित्य में महिलाओं ने अपने लेखन के माध्यम से सामाजिक और राष्ट्रीय मुद्दों पर गहन चर्चा की है । सुभद्रा कुमारी चौहान हों या उनकी समकालीन महादेवी वर्मा या फिर बांग्ला साहित्य में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित रवीन्द्रनाथ ठाकुर की समकालीन लेखिका आशापूर्णा देवी हों या फिर इस्मत चुग़ताई, अमृता प्रीतम या जन्मशती वर्ष की साहित्यकार कृष्णा सोबती या फ़िर मन्नू भंडारी तथा अलका सरावगी! इन लेखिकाओं ने न केवल महिलाओं के अधिकारों की बात की, बल्कि अपने समय की सामाजिक कुरीतियों के प्रति विद्रोही स्वर मुखर किया। इसके अलावा भी नामों की एक लम्बी फ़ेहरिस्त है।
ऐसा नहीं कि ‘स्त्री स्वर’ को मुखर करने में केवल महिलाओं की भूमिका रही, महिला सशक्तीकरण की इस प्रक्रिया में पुरुष साहित्यकारों का योगदान भी अतुलनीय है। राजा राममोहन राय ने अपने लेखन और सुधारवादी दृष्टिकोण से सती प्रथा जैसी कुप्रथाओं का विरोध किया और नारी को उसका अधिकार दिलाने के लिए आंदोलन किया। प्रेमचन्द ने अपनी कहानियों में ग्रामीण जीवन और उसमें नारी की स्थिति को मार्मिक ढंग से चित्रित किया। उनकी रचनाएँ नारी के आत्मसम्मान और उसकी सामाजिक स्थिति को सुधारने का संदेश देती हैं। सुब्रमण्यम भारती जैसे कवियों ने नारी को देवी और शक्ति का स्वरूप मानते हुए उसे समाज में समानता और स्वतन्त्रता दिलाने का प्रयास किया। उनकी कविताएँ नारी के प्रति आदर और उसकी शक्ति को रेखांकित करती हैं। जैसा कि पहले ज़िक्र किया गया, ‘स्त्री स्वर’ को मंच प्रदान करने के अलावा इस अंक के माध्यम से हमने स्त्रियों के साहित्यिक संसार की उन परतों को खोलने का प्रयत्न किया है, जो अनुभवों से समृद्ध हैं। यह केवल उनकी रचनाओं का सम्मान नहीं, बल्कि उस संघर्ष और संकल्प का उत्सव भी है, जिसने उन्हें हर बाधा के बावजूद सृजनशील बनाए रखा।
इस माह हम ‘छायावाद काल की मीरा’ महादेवी वर्मा की 119वीं जयंती भी मना रहे हैं। उनकी कविताओं में करुणा और आत्मा का संवाद होता है। महादेवी वर्मा की एक कविता ‘चिर सजग आँखें’ में ‘चिर सजग’ का अर्थ है वह अंतर्निहित सतर्कता और चेतना, जो मनुष्य को कठिनाइयों और बाधाओं के बावजूद प्रेरित करती है। कविता में प्रयुक्त प्रतीकों और बिम्बों के माध्यम से महादेवी वर्मा ने प्रकृति के विभिन्न तत्त्वों को मनुष्य के संघर्ष और उसकी मानसिक अवस्था से जोड़ा है। इसी कविता से अंक का शुभारम्भ किया गया है। आशा है पाठक, जीवन के मर्म को समझने का अवसर देती इस कविता को सराहेंगे और प्रेरणा लेंगे। और हाँ, अंक पढ़ने के बाद अपनी प्रतिक्रिया से भी अवश्य अवगत कराएँगे।