logo
  • Publication Division Slider

मार्च कवर 2025

आगामी अंक




इस अंक में

प्रसंगवंश

साहित्य ने सदैव समाज के बदलावों और संवेदनाओं को प्रतिबिम्बित करने के लिए दर्पण की भूमिका निभाई है। इसमें महिलाओं का योगदान अविस्मरणीय है। वे केवल प्रेरणा का स्रोत नहीं रहीं, बल्कि स्वयं रचनाकार भी रही हैं। स्त्री सृजन की शक्ति है। उनकी लेखनी में न केवल व्यक्तिगत अनुभव बल्कि समाज की गहरी समझ झलकती है।

प्रमुख आलेख

कविता में सशक्त होता स्त्री स्वर

लेखक : अर्पण कुमार

विस्थापन पर कवयित्रियाँ अपने ढंग से कविताएँ लिखती रही हैं। पहाड़ों में बने बड़े बाँधों का शिकार वहाँ के कई गाँव होते रहे हैं। उन विस्थापितों की स्मृतियाँ कविता में अपने ढंग से आई हैं। सुनीता की ‘टिहरी शहर’ ऐसी ही कविता है। प्रीति चौधरी ‘सड़क’ शीर्षक अपनी कविता में सड़क चौड़ीकरण के लिए कटते वृक्षों से विस्थापित पक्षियों और नन्हें जंतुओं के विस्थापन पर ध्यान केन्द्रित करती हैं। विस्थापन से जुड़ी स्मृतियाँ/दर्द, वंदना शुक्ल (‘विस्थापन’), रश्मि भारद्वाज (‘इन ए पेपर वर्ल्ड’), प्रीति सिंह परिहार (‘लौटने की कोई जगह नहीं’) आदि की कविताओं में हैं।

विशिष्ट/फोकस/विशेष आलेख

ढोकरा कला आदिवासी संस्कृति की झलक

लेखक : ढोकरा कला आदिवासी संस्कृति की झलक

बचपन पिता के तबले की थाप सुनते ही बीता और पिता ने तीन साल की उम्र में ज़ाकिर को भी तबला थमा दिया। पिता से मिले इस आशीर्वाद ने ज़ाकिर हुसैन को तबले का दीवाना बना दिया। उनकी सुबह-शाम, दिन-रात सब कुछ तबला ही था। छुटपन में वे कोई भी सपाट जगह देखकर उँगलियों से धुन बजाने लगते थे। रसोई में माँ खाना बना रही है और बालक ज़ाकिर तवा, हाँडी और थाली, जो भी मिलता, उसी पर अपनी उँगलियाें की थाप देने लगता।
अपने हुनर के दम पर तबले को वैश्विक मंच पर स्थापित कर अपनी जादुई उँगलियों की बदौलत बेजोड़ लय से दुनिया भर को मंत्रमुग्ध करने वाले उस्ताद ज़ाकिर हुसैन को 1988 में पद्मश्री, 2002 में पद्म भूषण और 2023 में पद्म विभूषण से नवाज़ा गया। उन्हें 2009 में पहला ग्रैमी अवॉर्ड मिला था। 2024 में उन्होंने तीन अलग-अलग एल्बम के लिए तीन ग्रैमी भी जीते। इस तरह ज़ाकिर हुसैन ने कुल चार ग्रैमी अवॉर्ड अपने नाम किए जो अपने-आप में एक रिकार्ड है।

FROM PREVIOUS ISSUES

April 2023

article-img

प्रेमचन्द और फ़िल्मी अनुभव

प्रेमचन्द के फ़िल्मी अनुभवों का संसार मुश्किल से एक वर्ष का है। फ़िल्म में जाने का उनका कोई इरादा नहीं था, लेकिन ‘हंस’ और ‘जागरण’ की आर्थिक हानि ने उन पर बम्बई (अब मुम्बई) जाने का दबाव डाला और उन्होंने अपने पत्रों में भी इसे स्वीकार किया कि यह उनके जीवन की सबसे बड़ी ग़लती थी। प्रेमचन्द मुम्बई पहुँचकर अजन्ता सिनेटोन कम्पनी में कहानी-संवाद लेखक का कार्यभार सम्भालते हैं और अपनी पत्नी शिवरानी देवी को पत्र में लिखते हैं, “अभी मैं नहीं कह सकता कि मैं यहाँ रह भी सकूँगा या नहीं। जगह बहुत अच्छी है, साफ़-सुथरी सड़कें, हवादार मकान लेकिन जी नहीं लगता। जैसी कहानियाँ मैं लिखता हूँ उन्हें निभाने के लिए यहाँ कोई ऐक्ट्रेस ही नहीं है। मेरी एक कहानी यहाँ सबको अच्छी लगी लेकिन यहाँ की ऐक्ट्रेसें उसे निभा नहीं सकतीं। उसे निभाने के लिए कोई पढ़ी-लिखी ऐक्ट्रेस...

Read Full Article


आजकल के पुराने अंक ( वर्षवार)